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मेरी‌ मुहब्बत हो तुम

मेरी‌ मुहब्बत हो तुम: स्वैच्छिक विषय प्रतियोगिता वास्ते
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मेरी‌ मुहब्बत‌ हो तुम,तुम कितनी सुन्दर लगती हो,
सावन की पहली बारिश सी, मधुबन की उड़ती‌ ख़ुश्बू सी,
माटी की सौंधी सी‌ खुश्बू ,पंछी की उड़ती पंगत सी,
तुम मेरी आंख का तारा एक स्वप्न‌ सुहाना लगती हो।
तुम मेरी मुहब्बत हो,तुम कितनी सुन्दर लगती हो।

तेरा गदराया सा योवन,मन छूने को ललचाता है,
तेरी बाहें मृणाल सम कोमल,गौर वर्ण खींचा करता है,
मधु पूरित कलश-द्वय अद्भुत आकर्षण हैं  तेरे,
ये कमर कम्बु सुराही सी दिल मे आन बसी मेरे,
ये सब मुहब्बत के लक्षण,तुम कितनी सुन्दर लगती हो।

तुम बागों मे जब जाती हो, भंवरे गुंजारने लगते हैं,
छोड़ कर फूल चमेली के वो तुम्हारे मुख पर आते हैं,
तुम्हारा मुख गुलाब सा सुन्दर,कितना प्यारा महकता है,
मानव क्या भंवरों को भी वह आकर्षित करता है,
गर्व है मुझे खुद पर तुम मेरी मुहब्बत हो,तुम कितनी सुन्दर लगती हो। तुम कितनी सुन्दर लगती हो।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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5 Comments

Sant kumar sarthi

21-Jan-2023 02:30 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Renu

20-Jan-2023 06:12 PM

👍👍🌺

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Abhinav ji

20-Jan-2023 08:04 AM

Nice

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